
लालू बन गए हैं स्क्रिप्ट राईटर...अमर सिंह के बाद अब लालू भी लिखने लगे है फिल्मों के स्क्रिप्ट...इस फिल्म में हर वो मसाला है जो आमतौर पर किसी हिंदी मसाला फिल्म में होती है...जरा सोचिये फिल्म के डाईलॉग कैसे होंगे....भैंस पर बैठे चले आ रहे हैं लालू और सामने हैं उनके साले साधू जो किसी नहर के किनारे बैठ कर दातुन कर रहे हैं....
लालू : अरे सधुआ - हमारा पास गाय है, भैंस हैं, रेल है, तोहरी बहिन राबडी है...तोहरा पास का है रे...
साधू : हमरा पास मैडम हैं...
मैडम मतलब तो बताने की जरुरत नहीं ना आपको...बिहार में राजनीति ऐसी करवट लेगी किसी ने सोचा भी नहीं था...जब राम विलास के झोपडी में लालू ने लालटेन जलाने की तैयारी की तो खफा हो गए उनके जोरू के भाई साधू यादव....लालू कांग्रेस का हाथ छोड़ सवार हो गए मुलायम की साइकिल पर..ज़ाहिर है उनके साले को कुछ न कुछ तो करना ही था..उन्होंने मौके का ज़बरदस्त फायदा उठाया और थाम लिया कांग्रेस का हाथ...जो पहले कभी गरीबों के साथ हुआ करता था...अब गुंडों और मवालियों के साथ भी है....खैर लालू - साधू के इस कदम से बेहद खफा हैं... है न फिल्म में ज़बरदस्त ड्रामा... फिल्म के गाने कैसे होंगे जरा ये भी सुन ही लेते हैं..
"साला गाली देवे...
मैडम जी हड़का देवें...
सधुआ है ब्लडी फूल...
सधुआ है अनारी...
चला है परदेश...
कोनो उसको बताओ
सबसे प्यारा जीजा का देश...
लालू नहीं है फूल..."
अब जरा सोचिये इस गाने के बाद एक शॉट है जिसमे चले आ रहे हैं मुलायम राम विलास और लालू यादव जी...
साइकिल पर बैठकर...साइकिल चला रहे हैं मुलायम,आगे बैठे हैं लालू और पीछे रामविलास..ये तीनो गिर जाते हैं कीचड़ में..वैसे देखा जाये तो तीनो वाकई कीचड़ में ही हैं...कीचड़ में लालू पूछ रहे हैं अपने अंदाज़ में " कादो रानी कितना पानी " जवाब कौन देगा ? जिस कीचड़ में ये तीनो गिरें हैं उसकी गहराई भाई नाप पाना आसन नहीं...एक और खास बात है..इस कीचड़ में कमल भी नहीं खिलता..मतलब उन्हें कीडे मकोडों के अलावा कुछ भी नहीं मिलेगा...खैर राजनीति है ...कब कहाँ क्या हो जाये कोई नहीं कह सकता...अन्दर ही अन्दर प्रधान मंत्री बन्ने का ख्वाब संजोय रखने वाले ये तीनो तीसरे विकल्प की तलाश में तो जुटे हैं लेकिन इसके लिए या तो उन्हें हाथ पकड़ना पड़ेगा..या कीचड़ में कमल खिलाना पड़ेगा...बिना उसके तो ये ख्वाब मुंगेरी लाल के हसीन सपने की तरह ही दम तोड़ देगा..." राम विलास लालू और मुलायम " वो कहते हैं न " तीन तिगाडा काम बिगाडा "...ये तीनो ओवर कांफिडेंट हैं...लेकिन जहाँ से मैं देख पा रहा हूँ खुद को त्रिदेव समझने वाले इन नेताओं की बिहार में तो ज़मीं खिसकती ही दिख रही है...और फायदा होता दिख रहा है लालू के फिल्म के विलेन नीतिश कुमार को जिन्होंने अपनी साफ़ सुथरी छवि और विकास कार्यों से वोटर्स को रिझा रखा है...खैर फिल्म का क्लाइमेक्स चाहे जो भी हो...मुझे जो उम्मीद है की चुनाव के नतीजे आने के बाद ये संभव है की सत्ता सुख और कुर्सी की रस्सा कसी में तीनो एक दुसरे के लिए यही गाना गाते दिखेंगे..मेरे दोस्त किस्सा ये क्या हो गया है सुना है की तू बेवफा हो गया..