रात गहरी है …
सड़क पर नंगा
सोया है मेरा दोस्त ,
सर्द की कप -कपाती
कुहासे को ओढ़,
सपनों में खोया है मेरा दोस्त …
महलों के आगे ,
संसद के पास,
हांथों तले सर छिपाए,
ठंढ की गहरी आगोश में
सोया है मेरा दोस्त ….
रुखी सूखी रोटी खाकर ,
महंगाई को …सरकार को
ताने देकर ,
आधी पेट सोया है मेरा दोस्त…
सड़कों के आवारा कुत्ते,
चाटते कभी गोश्त समझकर,
लाठी बजा जाता है कोई हवालदार,
नंगे जिस्म पर ….
छीन जाता है कोई रंगदार सिपाही,
दिन भर की कमाई,
गुजरती लाल बत्तियों की रौशनी से
गर्मी लेकर जिन्दा है मेरा दोस्त …
कभी घर था ,
मेरे दोस्त का भी ...
उसके पर दादाओं ने भी लड़ी थी ,
लड़ाई आज़ादी की ..
गाँधी जी की रैलियों में ,
पूर्वज कुछ उसके भी ,
साथ चले थे …
आज उसी आजाद भारत की धूल को ,
तकिया बनाकर,
सड़क की छाती पर सेज लगाकर
शायद बापू के सपनो में
खोया है मेरा दोस्त …
रात गहरी है …
सड़क पर नंगा
सोया है मेरा दोस्त ...
