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एक नई दुनिया मुमकिन है...

Manish Kishore

नई दुनिया का वक्त

नयी दुनिया और मैं मनीष...

Manish Kishore
नयी दुनिया एक सोच है...ये मेरी कल्पना की दुनिया है जहाँ की सुबह अलग है...और रात की अलग खुमारी है.. .जहाँ चांदनी रात आपको सुनहरे खवाबों में ले जाती है...हर तरफ तारों सी टिम टिमाती खुशियाँ...मैं मनीष किशोर इस नयी दुनिया की कश्ती का मांझी हूँ...पेशे से एक पत्रकार हिंदुस्तान के कई न्यूज़ चैनलों से गुजरने के बाद अभी वौइस् ऑफ़ इंडिया न्यूज़ चैनल की कमाई से घर में चूल्हा जला लेता हूँ..पेट की आग तो बुझ जाती है लेकिन लिखने की प्यास नहीं बुझती...जिस दुनिया में मैं रहता हूँ उस दुनिया से टीवी का वास्ता कम ही है...एक नयी दुनिया मुमकिन है ये प्रयास है अपने अन्दर जल रही आग को बुझाने का...आपके अपने ब्लॉग पर आपका स्वागत है...
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दिल का कोना

स्वागत है आपका...मेरे भावनाओं के पन्ने पर जहाँ मैं जो चाहे लिख सकता हूँ...कह सकता हूँ हर वो बात जो किसी से नहीं कह पाता...चाहे वो मेरे अधमरे प्यार की बात हो... या मेरे अन्दर धधक रहे इंक़लाब की...या भावनाएं दम तोड़ते एक पत्रकार की...सब कुछ बताना चाहता हूँ... अगर आप मुझे सुन पा रहे हैं...तो एक बार ही सही...कह दीजिये एक नयी दुनिया मुमकिन है....

नयी दुनिया की पुकार

जंजीरों से जकडे हुए मैं और मेरे विचार आज आज़ादी चाहते हैं कब तक हम गुलाम रहेंगे कब तक भूखे सोयेंगे ?कब तक चूसेंगे नेता हमारा खून ?कब तक झोंका जायेगा हमारी आँखों में धूल ?कब तक दुनिया को रंगीन चश्मे से देखा जायेगा ?कब तक वोट के नाम पर होंगे दंगे ?धर्म के नाम पर कब तक बटेंगे इंसान ? कब तक हमारे इस आँगन में बनती रहेगी नफरत की दिवार ? सब कुछ कब तक ख़त्म होगा हमारी आँखों के आगे...कब तक ? आखिर कब तक ?ये अलमीरा...ये टेलीविजन और ये बिस्तर सिगरेट के धुएँ से तंग तकिया और जले हुए फिल्टर्स से परेशान ज़मीं चीख चीख कर आवाज़ लगाती दीवारें...टिक टिक कर शोर मचाती ये घडी... सब मानो मुझसे यही कहना चाहते हैं अब बहुत हुआ...अब और नहीं अब सुबह हो गयी है दरवाज़ा खोल दो चिरागों को रौशन करो....अँधेरे के हर ज़र्रे को मिटा दो...नयी ज़िन्दगी की शुरुआत करो...मुझपर यकीं करो.. एक नयी दुनिया मुमकिन है....

नयी दुनिया का पिटारा

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नज़रे इनायत

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Mumkin ho to laut aao...

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