मैं खड़ा रहा..देखता रहा...मेरे कमरे में गुलाबी खिलौने को पकड़कर सो रही थी वो...मासूम सी..भोली सी..मेरे ख्वाबों की मल्लिका जैसी...चेहरे पर एक तिल था...कमर तक जुल्फें बिखरी थीं...उसका अंगूठा दांतों के बीच दबा था...मासूमियत इतनी की दिल कर रहा था उसे बाँहों में भर लूं ...जुल्फों से मदहोश करने वालीखुशबू हवा में फ़ैल रही थी...उसकी तेज़ चलती साँसों से मुद्दत बाद पूरा कमरा आज सांस ले रहा था...मैं एक टक उसे देख रहा था.. महसूस कर रहा था...खुश था...शायद मेरी बंज़र ज़िन्दगी में एक कमल खिला था...जी चाहा उसे उठाऊँ..बातें करूँ...पूछूं उससे कौन है वो?
जानी
सी...
पहचानी सी...
पर उसकी सोती आँखों को देखकर
ऐसा लगा मानो मुद्दत से नींद तलाश रहीं हों..
चुपचाप मैंने उस पर चद्दर डाल दी...
और उसके सुकून में
खुशियाँ तलाशने लगा...
मुझे नयी ज़िन्दगी मिली थी...
जिसे मैं जीना चाहता था...
तभी मैं जागा...
आँख खुली तो देखा घर में कोई नहीं था...पर उसकी जुल्फों की खुशबू...
अभी भी कमरे में फ़ैल रही थी...
दर्द में मैं बिलख उठा...
ऐसा लगा कुछ खो गया
आँखों में आँसू छलक उठे...
ख्वाब था शायद..ख्वाब ही होगा....!!!
सुना है कल रात एक सपने का क़त्ल हुआ है !!!
"किशी" मेरा नया नाम