मुझसे पूछे गर खुदा...

मेरी एक चाहत...

मैं हर रोज़ सुबह...

तुम्हारी साँसों की गति को

अपने कांधे पर...

महसूस करना चाहूँगा...

तुम्हारी लबों की गर्माहट...

अपने गालों पर...

महसूस करना चाहूँगा....

तुम्हारी उँगलियों को

अपने बदन पर महसूस करना चाहूँगा....

फिर आज मैं चला जाऊंगा...

इस डर से

तुम्हारी धडकनों को तेज़ धड़कते...

महसूस करना चाहूँगा....

जानता हूँ...

कल्पना और हकीक़त के फासले...

जनता हूँ...

खुदा नहीं पूछता किसी से....

उसकी कोई चाहत...

जानता हूँ...

जो लिखता है वो अपनी कलम से...

वही होती है तकदीर...

इस ज़िन्दगी का तो पता नहीं...

अगले जनम में ही सही

मैं तुम्हें

महसूस करना चाहता हूँ....