रात गहरी है …
सड़क पर नंगा
सोया है मेरा दोस्त ,
सर्द की कप -कपाती
कुहासे को ओढ़,
सपनों में खोया है मेरा दोस्त …
महलों के आगे ,
संसद के पास,
हांथों तले सर छिपाए,
ठंढ की गहरी आगोश में
सोया है मेरा दोस्त ….
रुखी सूखी रोटी खाकर ,
महंगाई को …सरकार को
ताने देकर ,
आधी पेट सोया है मेरा दोस्त…
सड़कों के आवारा कुत्ते,
चाटते कभी गोश्त समझकर,
लाठी बजा जाता है कोई हवालदार,
नंगे जिस्म पर ….
छीन जाता है कोई रंगदार सिपाही,
दिन भर की कमाई,
गुजरती लाल बत्तियों की रौशनी से
गर्मी लेकर जिन्दा है मेरा दोस्त …
कभी घर था ,
मेरे दोस्त का भी ...
उसके पर दादाओं ने भी लड़ी थी ,
लड़ाई आज़ादी की ..
गाँधी जी की रैलियों में ,
पूर्वज कुछ उसके भी ,
साथ चले थे …
आज उसी आजाद भारत की धूल को ,
तकिया बनाकर,
सड़क की छाती पर सेज लगाकर
शायद बापू के सपनो में
खोया है मेरा दोस्त …
रात गहरी है …
सड़क पर नंगा
सोया है मेरा दोस्त ...

5 comments:

hey dude....bahoot mast hai....really touching...keep it up...atleast we are youth...we need to think abt that...!!!...good going man...!! I appriciate!!!

Bhai tehrir kaa kyaa mutlab hoota hai...???

hi
dude
great job

really inspiring..i showed it to many of my frends.it should turn out to be a break for many of us when mostly we keep brainstorming about increasing profits and looking for new opprtunities.wondering how can we afford sitting in conditioned boardrooms when neighbourhood is so much full of filth.
keep up the spirit.
gautam

u think very deeply...gr8 thoughts buddy!!!